वास्तव एवं यतार्थ
कोई भी वस्तु या object प्रकाश लहरों के आड़े आ जाए तो परछाई बन ढल जाता है. ऐसे ही हरेक प्रत्यक्ष अनुभव विगत होते ही मनछाया बन जाता है. मनछाया,परछाई की तरह, वास्तविक तो है पर यतार्थ नही. मन का वास्तव यतार्थ को छू नहीं सकता. यतार्थ मन पर जागते ही मन खो जाता है.
-अरुण
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