ध्यान चूका और उलझन घटी – रूचि हो तो अवश्य पढ़ें

अगर धागा उलझकर गुत्थी बन जाए तो बुद्धि और समय विनियोजित करते हुए, प्रयास द्वारा उसे सुलझाया जाता है.
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यही तरकीब अपनी मानसिक उलझनों के बाबत apply करने की आदमी भूल कर बैठता है.
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मनोव्यापार (consciousness) पर आधा अधूरा ध्यान होने के कारण से ही सभी मानसिक उलझने पनपती है. स्वभावतः पूरा पूरा ध्यान जाते ही उलझने बिना प्रयास और बिना समय लिए बिन-उलझी अवस्था में जाग जातीं हैं.
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‘मै’ और पूरा पूरा मनोव्यापार एक ही phenomenon है, अलग अलग नहीं. फिर भी पर्याप्त ध्यान के आभाव में या ध्यान बट जाने से, ‘ध्यान देकर देखने वाला मै' और ‘दिखने वाला अंतर-दृश्य’, दो भिन्न बातें होने का आभास सक्रीय हो जाता है परिणामस्वरूप उलझनों की गांठे और भी पक्की बन जातीं है.
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समाधी या पूर्ण अखंडित ध्यान ही मन को उलझनों से मुक्त करता है.
-अरुण

Comments

yashoda Agrawal said…
आपकी लिखी रचना शनिवार 12 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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