झगडा पहलुओं का
सिक्के
को हाँथ में पकड़ना चाहो तो उसके दोनों पहलुओं को एक साथ पकड़ना होगा, ये सोचना या
चाहना कि केवल एक ही पहलू से वास्ता हो... मूलभूत नासमझी होगी. संसारी असयानापन
इसी नासमझी के कारण कभीभी न ख़त्म होनेवाली नादानी (मूढ़त्व) के संकट में मनुष्य को
धकेले हुए है. मन हमेशा एक ही पहलु के प्रति जागा होने के कारण इस नादानी से मुक्त
नही हो पाता और इसीलिए सकारात्मक-नकारात्मक के भेद से पीड़ित रहता हुआ किसी चयन (एक
ही चाहिए ..दूसरा नही) की उलझन में व्याकुल है. ....जगत को जो ह्रदय से देखे, मन
से नहीं, उससे द्वारा यह नादानी हो नही पाती. ऐसा ह्रदय हर स्थिति में राजी हुआ
जीता है
-अरुण
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