दो सांकेतिक शेर

भुला दिया हो मगर मिट न सकेगा हमसे
जो मिटाना है उसे भूल नहीं पाते हम

(अस्तिव जिसके हम अभिन्न हिस्से हैं उसे भले ही हम भूले हुए हों पर उसे हम कभी मिटा नहीं सकते.
परन्तु जिसको दिमाग ने रचा है, वह हमारा व्यक्तित्व, हमें मिटाना तो है पर उसको हम किसी भी तरह भूल नहीं पाते.)
********************
जहन ने देखा नहीं फिर भी बयां कर देता
दिल ने देखा है, जुबां पास नहीं कहने को

(अन्तस्थ को मन देख नहीं पाता पर बुद्धि के सहारे शब्दों में अभिव्यक्त करता है
जबकि भीतरी अनुभूति अन्तस्थ को पूरी तरह छूती है फिर भी अभिव्यक्ति का कोई भी साधन उसके पास नहीं है.)
- अरुण

Comments

Popular posts from this blog

षड रिपु

समय खड़ा है, चलता नहीं