निजी खोज जरूरी है

ये भीड़ उन लोगों की ही
जो अपनी निजी 'प्यास' का समाधान ढूंढ़ नही पाए पर
ये जान कर कि इर्दगिर्द भी लोगों में ऐसी ही 'प्यास' है
इकठ्ठा हुए,
'प्यास' का उपाय ढूँढने में जुट गए,
कई सार्वजानिक तरकीबें इजाद की,
मंदिर बने, पोथियाँ लिखी- पढ़ी गईं , पूजा पाठ
प्रवचन,भजन पूजन ऐसा ही सबकुछ
और अब यही सब.....
मानो 'प्यास' बुझाने के तरीकें मिल गएँ हों
पर सच तो यह है कि
निजी 'प्यास' अभी भी बनी हुई है
क्योंकि निजी खोज शुरू ही नही होती
...................................... अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
बहुत उम्दा!

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