दुनिया बदल रहा हूँ .....

दुनिया बदल रहा हूँ खुद को बदल न पाया
होगा तभी बदल जब खोए जगत की छाया

जेहन है छाया जगत की जिस्म के भीतर
..................
माटी न बांधती है किसी को यहाँ मगर
हम ही बंधे उसे, वो तो अजाद है

मेरी- तेरी कह के, हमने बाँट दी सारी जमीं
................
कागज पे लिख रही है कलम लफ्ज ए जेहन
कागज को सिर्फ स्याही का आता सवाद है

कागज न जाने. न जाने दिमाग - लिखा क्या है उसपे?
................................................. अरुण

Comments

RAJNISH PARIHAR said…
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है अपने विचारों की अभिव्यक्ति के साथ साथ अन्य सभी के भी विचार जाने..!!!लिखते रहिये और पढ़ते रहिये....

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के