तीन पंक्तियों में संवाद
नफरत निभाई जाती है संग दोस्त के
जिससे हो वास्ता उसी से हो सके घृणा
भावना का विश्व है बड़ा पेचीदा
.....................
मन न कभी मन को मिटा पाया
कलम न कभी लिखे को मिटा पाई
मन ही मन रचे समाधानों से काम चल जाता है
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अभी ईश्वर को जानने की जल्दी नही है
'हाँ, मै उसे मानता हूँ' - ये ख्याल ही ईश्वर सा है
इसीलिए खोजी कम और आस्तिक बहुत हैं
......................................................... अरुण
जिससे हो वास्ता उसी से हो सके घृणा
भावना का विश्व है बड़ा पेचीदा
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मन न कभी मन को मिटा पाया
कलम न कभी लिखे को मिटा पाई
मन ही मन रचे समाधानों से काम चल जाता है
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अभी ईश्वर को जानने की जल्दी नही है
'हाँ, मै उसे मानता हूँ' - ये ख्याल ही ईश्वर सा है
इसीलिए खोजी कम और आस्तिक बहुत हैं
......................................................... अरुण
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