तीन पंक्तियों में संवाद
पेड़ का फल -फूल की सुरभि
बुद्धि का फल, प्रेम की सुरभि
हम पकड़ते हैं फल, सुरभि पकड़ती है हमें
...........
हम तो सोये हुए- जागते भी, सोते भी
सोये हैं विचारों में, सोये हैं सपनों में
जागना अभी बाकी है असली सच्चाई में
.............
ये आसमाँ और ये धरती
देह से अलग कहाँ?
भेद है दृष्टि में, अस्तित्व में कहाँ ?
................................................ अरुण
बुद्धि का फल, प्रेम की सुरभि
हम पकड़ते हैं फल, सुरभि पकड़ती है हमें
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हम तो सोये हुए- जागते भी, सोते भी
सोये हैं विचारों में, सोये हैं सपनों में
जागना अभी बाकी है असली सच्चाई में
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ये आसमाँ और ये धरती
देह से अलग कहाँ?
भेद है दृष्टि में, अस्तित्व में कहाँ ?
................................................ अरुण
Comments
देह से अलग कहाँ?
भेद है दृष्टि में, अस्तित्व में कहाँ ?...
दृष्टि का ही भेद तो है सब ....!!