रेखा होती ही नही ......
सच्चाई यह है कि
समय होता ही नही
परन्तु काल (त्रिकाल) का
सदैव अनुभव हो रहा है
ऐसा इसलिए कि
ध्यान बंट गया है टुकड़ों में और इसीलिए
ध्यान और अध्यान का एक क्रम बन जाने से
यानी
ध्यान-अध्यान .. ध्यान-अध्यान .... ध्यान-अध्यान
के अनुभूत होने से
निरंतरता की कल्पना जाग उठी है
दूसरे शब्दों में
ऐसा भी कह सकतें हैं कि
रेखा होती ही नही
केवल बिंदु ही बिंदु हैं
परन्तु बिंदुओं के प्रति अध्यानावस्था होने से
रेखा की कल्पना सजीव हो गई है
.................................................. अरुण
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