कौन सी मिटटी मेरी ?

योग करूँ ? ध्यान करूँ?

व्यायाम या प्राणायाम करूँ?

क्या करूँ?

ज्ञान से जाऊं कि ध्यान से कि

भक्ति से ?

व्यर्थ हैं ऐसे प्रश्न

इसका जबाब न स्वयं के पास होगा

और न दूसरा दे सकता है

अगर कोई बीज पूछे

कौन सी मिटटी, किस रंग सुगंध की मिटटी,

मेरे लिए सही होगी?

हमारे पास बस यही जबाब होगा-

जहाँ गिरकर तुम फूटो, फलो, ऊगो,

पौधा बन जाओ,

वही मिटटी तुम्हारी है

बाकि सब बेमेल, थोता या

झूठा है

................................. अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
बहुत गुढ़ बात कही आपने रचना के माध्यम से.
प्रश्न तो सारे ही व्यर्थ है,
अंत में सोच हो जाती है परेशान,
और फिर प्रश्न करना देती है कम,
खुद ब खुद,
मगर यह भी गौरतलब है,
की करने के बाद ही चलता है यह मालूम,
इसे ही नाम दिया जाता है अनुभव.
जहाँ गिरकर तुम फूटो, फलो, ऊगो,

पौधा बन जाओ,

वही मिटटी तुम्हारी है

बाकि सब बेमेल, थोता या

झूठा है
बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति है। शुभकामनायें

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