The Joy of Living Together- अध्याय 1 (भाग २)

..........इन्द्रियों के माध्यम से प्राप्त ज्ञान से मुक्ति की स्थिति में शुद्ध मन यानी पूर्ण अवधान जागता है । इस जागृत अवस्था में सभी भेद मिटते हैं एवं एकात्म भाव सक्रीय होंने से, ऐसी भाव स्थिति में शांति, आनंद एवं एकलयता की अनुभूति होंने लगती है।
ज्ञान हमेशा ही गत काल से जुड़ा है अतः उसे वर्तमान की कोई खबर नही होती। जीवंत वर्तमान का जीवन जीने के लिये किसी भी ज्ञान, शब्द, प्रतिमा, चिन्ह, चित्र, प्रतिक या कोई भी चीज जो वर्तमान का प्रतिनिधित्व करे, की आवश्यकता नही है।
सेंट पाल, अष्टावक्र, गौतम बुद्ध एवं जे कृष्णमूर्ति, सभी ने स्वर्ग, भय, मुक्ति ऐसी संकल्पनाओं एवं नियमों में ढाले गये धर्मों कों स्पष्टतः नकारा है। उनके अनुसार संगठित (संकल्पनाओं पर आधारित) धर्म ही सभी मानव-पीडाओं के मूल कारण हैं। इस तरह के धर्मों (मार्गों) से सत्य समझने वाला नही, इस विचार कों जे कृष्णमूर्ति ने आगे रखा। इसी लिए सामान्य जन कों किसी भी संगठित धर्म का अनुपालन, समर्थन या प्रचार करने की प्रवृति से मुक्त रखना जरूरी है। .............. क्रमशः आगे अध्याय १ (भाग ३)

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