The Joy of Living Together - प्राकथन

इस पुस्तक में पृथ्वीतल पर मनुष्य का अस्तित्व -स्वरूप और उसकी मान्यता, खोज, अनुसंधान, रीती-रिवाज, विश्वास, श्रद्धा, आकांक्षा तथा अभिलाषा जैसे विषयों पर चर्चा की गई है। वर्तमान में, साहित्य, इतिहास, दर्शन, धर्म, विज्ञान जैसे विषयों पर अनगिनत पुस्तकें उपलब्ध हैं और ऐसी सभी पुस्तकें इस बात को उजागर करती हैं कि आदमी एक सरल सुविधापूर्ण और सफल जीवन के उद्देश्य की पूर्ती के लिए अपनी सारी उर्जा खर्च कर रहा है । वह अपने जीवन में सत्ता, सम्पति, नाम और कीर्ति पाने के लिए बेचैन है। इस तरह के संघर्ष के दौरान उसे कई संकटों, परीक्षाओं, निराशाओं तथा पीडाओं से गुजरना पड़ता है। परन्तु ऐसी जिद्दोजहद के बाद भी जब आदमी कों प्राप्त - सफलता संतोष न दे पाई तो वह यह सोचने कों विवश हुआ कि शायद यह सारा प्रयास व्यर्थ ही रहा। इसतरह, व्यर्थता-भाव से आहत हुआ चिंतनशील आदमी यह सोचने में जुट गया कि कहीं यह जीवन एक आभास मात्र तो नही।
अपने सामुहिक जीवन में खुशहाली के लिए आदमी ने अनेक तरह के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक सुधारों के प्रयास कियें हैं। परतु हर सुधार के बाद आदमी कों अगला सुधार करना पड़ा है और सुधारों का यह क्रम कभी भी समाप्त होता नही दिखाई देता । अंततः यही सोच उभरती है कि हम जिसे अपना जीवन समझ रहे है कहीं वह एक भ्रम तो नही । .............................. इसके आगे कल

Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के