The Joy of Living Together - अध्याय १ (भाग ६)

क्रमशः ..... समय - अब-अभी और तब-तभी (Time - Present and Past)
वर्तमान यानी अभी जो है वह क्षण या काल ही जिन्दा रूह है, बीता वक्त तो है मृत-काल; इस बात को जीसस क्राइस्ट और उसके सन्देश वाहकों द्वारा कुछ उदाहरणों के साथ समझाया गया है उन्होंने यही कहा कि ईश्वर हमेशा जिन्दा रूह में ही विद्यमान है, मृत-काल या बीते समय में नही

उदाहरण- जीसस ने शिष्य से कहा आओ मेरे पीछे आओ तो शिष्य ने कहा पहले मुझे मेरे पूर्वजों को समाप्त करने का मौका दीजिए तात्पर्य यही की गत को समाप्त किये बिना जीवंत में रहना कठिन है जो लोग अपने होने से दूर बनने या संग्रह वृत्ति में रम जाते हैं वे सब बीते या past में खोये हुए हैं वे सब रूह के बाबत मृत हैं कुछ बिरले ही जो आत्म-ज्ञान या अवधान में रहते हैं, वर्तमान में उपस्थित रहकर जीवन जी रहे हैं

बीते या गत काल से आच्छादित जीवन जीने वाले लोग अंतिम या परम वास्तव या रूह को न जानने वाले ऐसे मंद-बुद्धि लोग हैं जो बुद्धि-प्रकाश विहीन होते हैं नवानुभुती, मन और दृदय तीनो ही वर्तमान से जुड़े हैं जबकि पुरानुभुती और गत हमारे बीते काल से संबद्ध है

मस्तिष्क, मन और हृदय इनके भेद को समझना भी रुचिकर लगता है मनुष्य शरीर के मस्तिष्क तथा ह्रदय की तो सर्जरी संभव है परन्तु मन की शल्य चिकित्सा नही की जा सकती शरीर में मन का न तो कोई विशेष स्थान है जहाँ वह रहता हो और न ही उसे देखा जा सकता है इस आधार पर इतना कहा जा सकता है कि मस्तिष्क और ह्रदय, दोनों पदार्थ हैं पर मन पदार्थ नही, एक जीव-धारा है मस्तिष्क में स्मृति जैसी यंत्रणा है जो बीते अनुभवों की छाप को संचित करती है, परन्तु मन और ह्रदय के पास ऐसी कोई व्यवस्था नही है स्मृति, - अनुभव, विचार और इसी से बने ज्ञान का- संग्रह स्थान है मस्तिष्क में संग्रहित ये तीनो ही बातें गत से जुडी हुई हैं, परन्तु मन और ह्रदय वर्तमान को ही अनुभूत करता है शुद्ध मन जब मस्तिष्क में संग्रहित गत के संपर्क होता है तब गत काल में भ्रमण करने के कारण मंद हो जाता है और इसीलिए हम जैसे अधिकतर लोग मंद-बुद्धि लोग हैं ऐसे मंद-बुद्धि या अशुद्ध-मन के सहवास में रहकर दी और ली जाने वाली कोई भी धार्मिक दीक्षा या सन्देश अंतिम सत्य को दर्शाने में असमर्थ होगा ऐसी धार्मिक शिक्षा शुद्ध शैतानी है जो मंद बुद्धि लोगों को भ्रमित करती है .......क्रमशः आगे अध्याय १ (भाग ७)

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