दुनिया मन की रची हुई


अस्तित्व न बनता है
और न कुछ बनाता है
फिर भी इस अस्तित्व में
माया-बाधित आदमी
दुनियादार बनकर मन में
अपनी दुनिया रचता है
जबतक मन है, दुनिया कायम है
मन के ओझल होते ही
दुनिया ओझल और अस्तिव पूर्ववत कायम
-अरुण

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