पाप-निष्पाप


जिसके हांथो पाप घटना संभव नही
वह साधु है.
जो समझ और होश के साथ पाप न करे
वह सत्चरित्र है.
जो पाप करने से डरे
वह (पापभीरु) पापी है.
जिसके हांथो अनजाने में पाप घटता हो   
वह निष्पाप है 
जो अपने को सत्चरित्र कहलाने में रूचि रखता हो
वह ढोंगी है
और जो समझबूझकर पाप कर रहा हो
वह है पाप का सौदागर  
-अरुण  

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