पर सत्य-स्पर्शी नही


अस्तित्वरुपी सत्य-जल में
पूरी तरह डूबा हुआ आदमी
अपने मन-जल में डुबकियां लगाता
विचर रहा है
और मन-जल में ही सत्य के बारे में
चिंतन कर रहा है.ऐसा चिन्तक
दार्शनिक तो है पर सत्य-स्पर्शी नही
-अरुण

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