अस्तित्व में समाधिस्थ
देख-सुनकर चित्त में बने
अस्तित्व के स्मृतिरूप टुकड़े
अस्तित्व को चित्त में विभाजित कर देते हैं
अस्तित्व का सत्यरूप
न विभाजित होता है और
न हो सकता है ......
यह सच्चाई जिनके प्राण और ध्यान में
पल पल जीवंत है
वे अस्तित्व में पूर्णतःसमाधिस्थ हैं
-अरुण
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