नदी लुप्त तो किनारे भी गायब

नदी बहे तो दो किनारे

अपने आप बन जाते हैं

दरअसल, किनारे अंदर से एक के एक हैं

फिर भी दो दिखते हैं

दोनों के अलग होने का भ्रम,

दोनों को अलग इकाई बनाकर

दोनों के बीच संवाद शुरू कर देता है,

एक किनारा व्यक्ति (Subject) तो दूसरा

वस्तु बन ( Object) बन जाता है

दोनों किनारे का एकत्व जानने के दो रास्ते हैं

एक नदी के तल में उतर जाना

दूसरा- नदी के अस्तित्व को को लुप्त कर देना

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चेतना के बहाव के कारण भी

व्यक्ति और वस्तु जैसे

दो टुकड़े उभर आतें हैं

सम्पूर्ण चेतना ध्यान में उतरते ही

लुप्त हो जाती है और किनारे भी

खो जाते हैं

............................... अरुण

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