एक रूहानी गजल
उसने तो रोशनी दी, दिख्खे सभी ओ साफ
अपने लिए ये रोशनी दीवार बन गई
उसको कहें खुदा, खुद उसमे से निकल
अब उसकी मेहरबानी सरोकार बन गई
मैदान में खड़ा हो तसब्बुर का कोई पेड
जब पेड हो तो छाँव की दरकार बन गई
ख्वाइश की की गुलामी, मकसद की चाकरी
नाकाम साँस वक्त की सरकार बन गई
खुद से ही चल रही थी खुद की ही जुस्तजू
पल पल की खबर मुझको दीदार बन गई
.......................................... ............अरुण
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