दो शेर

इतना न प्यार दो कि आदत जकड़े
घर के बाहर है बड़ी जिद्दोजहद

ख़ुशी जाहिर करो मगर बेइन्तिहाँ न करो
दिल टूटेंगे उनके जो ग़मगीन बैठे हैं
........................................... अरुण

Comments

Udan Tashtari said…
बढ़िया शेर!

यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी

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