आज के नये शेर

दिमागी खेल हुआ करती दुनियादारी
कुदरती जिंदगी तो दिल को समझ आती है
................
दौड़ते जिस्म ने जानी जो लहू की गर्मी
किसी पोथी में समझाई नही जा सकती
.................
हिन्दू हो या मुसल्मा या कोई धरम
ये तो चोलें हैं, इनके परे है सच्चाई
..............................
न चलना है न जाना है न पहुँचना है कहीं
जहाँ पे खड़े हैं, वहीँ पे लौट आना है
.................................................... अरुण
इस ब्लॉग पर ठीक एक साल पहले लिखना शुरू किया.
लगातार लिख रहा हूँ. पाठकों का आभारी हूँ
----- अरुण खाडिलकर

Comments

न चलना है न जाना है न पहुँचना है कहीं
जहाँ पे खड़े हैं, वहीँ पे लौट आना हैnice

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द