जीवनगत एक गज़ल
सभी कामनाएँ सफल हो गयीं पर
नही तृप्त होती मनस प्यास पूरी
सारे सवालात जीवंत मन के
जबाबों से उनकी नही कोई दूरी
किसी भी शिला से निकालो निरर्थक
बचे शिल्पसा एक सार्थक जरूरी
व्यक्तित्व की तब निद्रा विखंडित
अचानक सजगता, करे वार भारी
कभी शेर में ढल , कभी मुक्त कविता
मनन चिन्तना की, बहे धार सारी
................................................ अरुण
नही तृप्त होती मनस प्यास पूरी
सारे सवालात जीवंत मन के
जबाबों से उनकी नही कोई दूरी
किसी भी शिला से निकालो निरर्थक
बचे शिल्पसा एक सार्थक जरूरी
व्यक्तित्व की तब निद्रा विखंडित
अचानक सजगता, करे वार भारी
कभी शेर में ढल , कभी मुक्त कविता
मनन चिन्तना की, बहे धार सारी
................................................ अरुण
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