तिकड़मे राजनीति

तुम जनता की आवाज हो, यह कहते हो
फिर प्रोपर्टी जनता की जलाते क्यों हो
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दहशत की है जुबान, हिंसा का है फरमान
और कहतें हैं, हमारा हक़ है ये
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तुम्हे मालूम है के जनता कुछ कहती नही
उसकी नुमाईंदगी जताके बवाल करते हो
.....................................................अरुण

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