स्वरूप पर प्रतिस्वरूप की धूल



आईने में प्रतिबिम्ब हैं
बाहरी प्रतिमाओं के,
परन्तु आइना
उन प्रतिबिम्बों से न बंधता है
और न ही उन पर निर्भर है
आदमी के ‘स्वरूप’ पर भले ही
प्रतिस्वरूपों के बिंब मंडरा रहे हों
परन्तु वह उनसे बंधा नहीं है और
न ही उनपर निर्भर है
उस ‘स्वरूप’ को स्पष्टता पूर्वक देखने से
प्रतिस्वरूप की धूल छट जाती है
ऐसे देखने को ही ध्यान या मैडिटेशन
कहते हैं
-अरुण

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