दो तरह की दृष्टियाँ
सकल
सृष्टि के सकलत्व से
खुद
को देखना और अपने केंद्र से
सकल
को देखना दो भिन्न बातें हैं
पहले
ढंग से देखने वाला आदमी
अपनी
भ्रांतियों से मुक्त हो जाता है और
दूसरे
ढंग से देखनेवाला
अपनी
भ्रांतियों से सकल को ओढ़कर
उसे
देखता है
-अरुण
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