सत्य – कोशिशों के थककर थमने के बाद
बात
अगर ठीक ढंग से न कही जाए
तो
उसे समझने में भूल होना लाजमी है.
चूँकि
इस भौतिक जीवन में
चाही
चीजे कोशिशों से हासिल होती हुई देखी गई हैं और इसके उलट,
आध्यात्मिक
तत्व-बोध कोशिशों के बावजूद भी होता नहीं दिखता,
यह
कहा गया कि ‘सत्य कोशिशों से नही मिलता’.
दरअसल
ऐसा कहना भी ठीक नहीं है.
कहना
तो यूँ चाहिए कि – जब कोशिशे पूरी हो जाती हैं और थक जाती है,
सत्य
के अनायास मिलने की
संभावना
बनती है
-अरुण
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