वैसे तो आज का दिन सभी आम दिनों जैसा ही है, फिर भी मेरी स्मृति, परिवार और समाज-सम्बन्धों ने उसे विशेष बना दिया है. कई अन्य मित्रों और बहनों की ही तरह, आज का दिन मेरा भी जन्म दिन है,. इस अवसर पर कुछ विशेष लिखूं ऐसा मेरा मन मुझसे कह रहा है. अभी जीवन के ऐसे पड़ाव पर हूँ जब आदमी आगे देखने को नहीं, पीछे मुड़कर देखने के लिए ही प्रवृत होता रहता है. मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है ..... पीछे मुड़कर देखनेवाले मेरे इस मन से मै कुछ कहना चाहता हूँ ........ अरे मन ! .... तेरी स्थिति कितनी विचित्र और दयनीय है. तेरे अस्तित्व के सारे प्रमाण और संकेत इस शरीर में एवं शरीर-माध्यम से मिल तो जाते है परन्तु तेर रहने के लिए न तो इस शरीर में और न ही इस जगत में, एक भी कोना उपलब्ध है. अपनी जीवन गाथा को माथे में सक्रिय यन्त्रणाओं के माध्यम से तू भले ही बयां करता हो पर यह माथा (मस्तिष्क) तुम्हे जरा भी नहीं पह्चानता, जिस शरीर को तुम अपना शरीर समझते रहते हो उसने आज तक यह नहीं कहा की वह तेरा है शायद, कारण यह होगा कि .... जन्म के समय तुम इस शरीर के साथ न थे, और जब शरीर ...