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Showing posts from October, 2013

हाँ, तिरंगा फड़फडाता है.... पर क्यों ?

हवा की गति और दिशा के अनुसार तिरंगा एक ही लय से और एक ही दिशा में फडफडाता है, अगर तीन रंगों में से एक भी रंग अपनी भिन्न दिशा और गति साधने की कोशिश में लग जाए तो ..... झंडा फटकर .... फड़फडाना छोड़ देगा, अपनी गर्दन झुका लेगा ..यह बात राष्ट्र हित की खोखली बातें करने वालों को समझ लेनी होगी -अरुण          

तोरा मन दरपन कहलाए....

साहिर साहब बहोत ही भातें हैं. फिल्मी गीतों में गहन-भाव उलेड देने का उनका अंदाज़ अदभुत है.... काजल फ़िल्म के... इस गीत में ‘दरपन’ शब्द ने ... उस साक्षीभाव की बात की है ..जो दूर बैठे मन के सभी आन्दोलनों को बड़े ही त्रयस्थभाव से निहारता है.. बिना किसी प्रतिक्रिया के अवलोकता है   -अरुण

उजागरन और भटकाव

सूर्य की किरणें पृथ्वी की संपदा को छूकर उसका उजागरन   करतीं हैं परन्तु संपदा के गतिमान objects या वस्तुओं के साथ भटक (distract) नहीं जाती, जबकि मस्तिष्क-किरणें स्मृति संपदा को छूकर उसे उजागर करने की जगह, उसकी स्मृति से जुडी सह-स्मृति (Associate memory) के साथ गतिमान होकर भटक जाती है. इसी भटकाव (distraction) का नाम है मन. और उजागरन का मतलब है awareness -अरुण  

आज का दिन .... मन से संवाद

वैसे तो आज का दिन सभी आम दिनों जैसा ही है, फिर भी मेरी स्मृति, परिवार और समाज-सम्बन्धों ने उसे विशेष बना दिया है. कई अन्य मित्रों और बहनों की ही तरह, आज का दिन मेरा भी   जन्म दिन है,. इस अवसर पर कुछ विशेष लिखूं ऐसा मेरा मन मुझसे कह रहा है. अभी जीवन के ऐसे पड़ाव पर हूँ जब आदमी आगे देखने को नहीं, पीछे मुड़कर देखने के लिए ही प्रवृत होता रहता है. मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है ..... पीछे मुड़कर देखनेवाले मेरे इस मन से मै कुछ कहना चाहता हूँ ........ अरे मन ! .... तेरी स्थिति कितनी विचित्र और दयनीय है. तेरे अस्तित्व के सारे प्रमाण और संकेत इस शरीर में एवं शरीर-माध्यम से मिल तो जाते है परन्तु तेर रहने के लिए न तो इस शरीर में और न ही इस जगत में, एक भी कोना उपलब्ध है. अपनी जीवन गाथा को माथे में सक्रिय यन्त्रणाओं के माध्यम से तू भले ही बयां करता हो पर यह माथा (मस्तिष्क) तुम्हे जरा भी नहीं पह्चानता, जिस शरीर को तुम अपना शरीर समझते रहते हो उसने आज तक यह नहीं कहा की वह तेरा है शायद, कारण यह होगा कि .... जन्म के समय तुम इस शरीर के साथ न थे, और जब शरीर ...