‘बाहर’ और ‘भीतर’ का भेद मिट गया
आदमी ने अपने ‘बाहर’ को
देखना-समझना
शुरू किया.
देखते
देखते उसे यह बात समझ आने लगी की
जब
तक अपने ‘भीतर’ को भी
ठीक
से समझ नहीं लिया जाता,
पूरी
की पूरी बात समझ न आएगी.
और
जब बाहर और भीतर की अनुभूतियां
एक
ही पल और स्थल में अनुभूत होने लगीं
तो
ऐसे प्रबुद्ध आदमी में ‘बाहर’ और ‘भीतर’ का भेद मिट गया
-अरुण
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