अपनी निरंतरता खोने के भय से मन हमेशा ग्रसित
मस्तिष्क
और मन के बीच,
विचार
सन्देशवाहक
का काम करता है
उसे
जो लगे (realize हो), उसे मस्तिष्क
मन
तक पहुंचाना चाहता है .....
.....
परन्तु
होता कुछ और ही है ......
मस्तिष्क
किसी बात को
ठीक
से realize कर पाए इसके पहले ही
विचारक
हस्तक्षेप करते हुए ...
मस्तिष्क
की अधूरी-समझ को
अध-ढले
विचारों के माध्यम से मन तक ले जाता है
ताकि
मन इन अध-ढले विचारों यानि प्रतिमाओं के आधार से
अपनी
निरंतरता बनाए रख्खे.
अपनी
निरंतरता कहीं टूट न जाए,
यह
भय मन को,
हमेशा
बना रहता है
-अरुण
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