नचे जगत चित माहि
परदे पर छाया नचे, नचे जगत चित माहि
जात रोशनी दिख पड़े, यह माया कछु नाहि
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रोशनी और छाया के मेल से सिनेमा के परदे पर एक कहानी सजीव हुई भासित होती है, ठीक
इसीतरह मन के परदे पर भी जीवन अनुभव सजीव हुए दिखते हैं. सिनेमा में, रोशनी जाते ही सिनेमा ओझल हो जाता है और केवल कोरा पर्दा दिखाई
देता है, इसी प्रकार स्मृति प्रकाश से मुक्त होते ही माया रहित कोरा शुद्ध
जीवन दिखाई देता है
-अरुण
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