मन-सागर लहरे हिलती डोलती...



मन-सागर लहरे हिलती डोलती,
आपस में टकराती......
एक दूजे से बडबडाती हैं....
उनमें संवाद है, विसंवाद है,
आशयभरी आग है, राग है, विराग है
इन लहरों तक सिमिटी चेतना जब
भीतर सागर के गर्भ में उतरती है  
पूरे पूरे सागर में रमते हुए
अन्तस्थ के प्रशांत को छू लेती  है
-अरुण      

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