विचार या समय हूँ मैं
‘अब अभी यहीं’ पर खड़ा मैं
अपनी वेदनाओं और रिझावनों का
इतिहास देखता हूँ
सपनों से झरती... भिती
और उल्हास देखता हूँ ,,
देखना गहन होता गया तो पाया
मैं कोई अलग नहीं
यही वेदना रिझना, भिती और उल्हास हूँ
मैं,
असीम अनंत सनातन का यतकिंचित कण,
विचार या समय हूँ मैं
-अरुण
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