जगत निर-अवधि



वास्तव को देखो, दिखता... अखंडित है
टूक टूक देखा तो, वास्तव भी.. खंडित है
कांच के टुकड़ों में दृश्य सकल बंट जाता
दर्पण अखंडित तो प्रतिमा अखंडित है

पूरे से पूरे को देखना समाधी है
टूट टूट अवलोकन मन जागत अवधि है
दर्शक और दर्शन में सृष्टि को बाँट रहे
वास्तव या सत्य-जगत पूरा... निर-अवधि है
-अरुण   

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