चिंता..चिंतन


चिंता से फ़ुर्सत मिले तभी तो चिंतन करूँ?
मन के द्वारपर ध्यान का पहरेदार न हो तो
चिंता घुस आती है अपने
कई रिश्तेदारों को साथ लिये यानि....
भय, वासना, सद् भावना या दुर्भावना ......

सभी के पैर बंधे हुए हैं भूत से और उनके
आंखो पे दबाव है सपनों का
चिंता और उसके रिश्तेदार...दोनों ही
पहनकर आते है कोई विचार जिसके
आगे पीछे जुड़ा होता है विचारक

चिंता और रिश्तेदार द्रुतगति से ....
लगभग प्रकाशगति से संचारते हैं
भूत भविष्य के बीच
सावधानी में लगता है यह है
एक हवा का झोंका
असावधानी में 
एक विकराल बवंडर
- अरुण





Comments

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

पुस्तकों में दबे मजबूर शब्द

यूँ ही बाँहों में सम्हालो के