सत्य समयातीत
जिसकी कोई सीमा है
उस की ही हम
संकल्पना कर सकते है,
आदमी जिस समय की
बात करता है
वह उसकी सीमित
कल्पना का प्रतिफल है
जब उसका चिन्तन
सीमा-रहित हो जाता है
तब उस चिंतन में
सनातन (eternal) की समझ
जाग उठती है और
इसीलिए ऐसा चिन्तक
अपनी
भाषा-अभिव्यक्ति में
सत्य को समयातीत
कहता है
-अरुण
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