अक्सर मै सोचता हूँ कि ...
अगर
अवांछित चीज/चीजें दृष्टि में आते ही गायब हो जाए... तो एक ही पल में जो भी
परिवर्तन चाहिए....वह घट सकेगा. अगर एक ही दृष्टि में सभी की सभी अवांछित चीजें
लुप्त हो सकें...तो एक ही क्षण सम्पूर्ण क्रांति के लिए काफी है.
मगर
ऐसा होना संभव नहीं हो पा रहा.... केवल इसलिए क्योंकि... वह निर्बाध, अखंडित, निर्मल,
निर्मन, विशुद्ध, समयमुक्त दृष्टि, जिस आँख को प्राप्त है वह आँख... साधना के
बावजूद भी.... अभी भीतर-बाहर जाग नहीं पा रही.
-अरुण
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