सत्य समयातीत



जिसकी कोई सीमा है
उस की ही हम संकल्पना कर सकते है,
आदमी जिस समय की बात करता है
वह उसकी सीमित कल्पना का प्रतिफल है
जब उसका चिन्तन सीमा-रहित हो जाता है
तब उस चिंतन में सनातन (eternal) की समझ
जाग उठती है और इसीलिए ऐसा चिन्तक
अपनी भाषा-अभिव्यक्ति में
सत्य को समयातीत कहता है
-अरुण

Comments

yashoda Agrawal said…
आपकी लिखी रचना बुधवार 18 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
Pratibha Verma said…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
Pratibha Verma said…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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