दुनियादारी

सामाजिक परिवेश में जन्म पाने के कुछ दिनों के बाद-
सर्व प्रथम - भेद का भाव
जिससे उभरे स्व एवं पर का भाव
परिणामतः जन्मे भय भाव और सुरक्षा की इच्छा
यही है सुखेच्छा, दुःख का प्रपंच लिए
दुःख से निकलने की तड़प ही
उलझाती है नए दुःख में
इसी दुष्ट चक्र को कहते हैं - संसार या
दुनियादारी
............................. अरुण

Comments

Vinay said…
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
----
INDIAN DEITIES

Popular posts from this blog

मै तो तनहा ही रहा ...

षड रिपु