दो शेर

सदियाँ गुजर चुकी हैं कुछ भी अलग नही
अब भी वही जहन है जिद्दोजहद लिये


फैली खुदाई बाहर भीतर वही खुदाई
कुछ भी जुदा नही है 'मै' के सिवा यहाँ

........................................................... अरुण

Comments

M VERMA said…
बेहतरीन
bahut hi khubsurat sher hai..........atisundar
mehek said…
सदियाँ गुजर चुकी हैं कुछ भी अलग नही
अब भी वही जहन है जिद्दोजहद लिये

waah lajawab
Jyoti said…
कुछ भी जुदा नही है 'मै' के सिवा यहाँ..
sab kuchh yahi to hai.. 'main' se ' ' tak.. shubhkamnayen

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