जिंदगी का एक मात्र धर्म


मेरा अपना अलग अस्तित्व नही,
फिर भी लगने लगा
मेरी अपनी अलग पहचान नही,
फिर भी लगने लगी. 
अपने अलग होने के इस कल्प-भाव ने,
दुजा-भाव जगाया
और उन दूजों से अच्छे-बुरे
रिश्ते गढ़ दिये.
अब इन रिश्तों का
व्यवस्थापन करते रहना ही
मेरी जिंदगी का एक मात्र धर्म है
-अरुण 

Comments

Popular posts from this blog

षड रिपु

मै तो तनहा ही रहा ...