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Showing posts from August, 2012

चैतन्य का स्पर्श

चेतना जब बीते अनुभवों के स्मृतिसंवेदन से सक्रिय हो उठती है तब अहंकार का जन्म होता है जब यथावास्तव ( Real Reality) का भान रखते हुए सकल में समाहित होती है तब चैतन्य का स्पर्श होता है -अरुण

मैं अपनी इच्छाओं का भी धनी नही

‘ मै अपनी चाह ( will) के अनुसार कृति कर सकता हूँ यानी मै अपनी इच्छाओं का धनी हूँ ’ - क्या यह धारण सही है ? नही, बिलकुल नही क्योंकि मै क्या या कौनसी इच्छा और कब करता हूँ इस बात का निर्धारण मेरे मस्तिष्क में मेरे इच्छा करने के ६ सेकण्ड पहले ही हो जाता है -अरुण  

सामाजिक संपर्क-व्यापार

सामाजिक संपर्क-व्यापार के चलते आदमी की अपनी उपस्थिति और पहचान उभर आती है (जो वस्तुतः भ्रामक ही है) जिंदगीभर आदमी अपनी इसी उपस्थिति और पहचान को समाज में प्रसारित करने में जुटा रहता है ताकि उसकी अपनी नजर में उसकी अहमियत बढती रहे -अरुण  

मन शरीर में उपजा एक भ्रम-पदार्थ

मन शरीर में उपजा एक भ्रम-पदार्थ है जिसके भीतर यतार्थ से संपर्क घटते ही विचार और फलतः विचारक अवतरित होता है, विचारक या अहम के उपजते ही   वासना, प्रयत्न, संकल्प और कुछ बनने का ख्याल पैदा होता है ऐसे स्वप्निल ख्याल समय की अवधारणा की मिथ्या कल्पना को संचालित कर देते हैं फिर पीछे पीछे भय, पलायन, संभ्रम, दुःख और फिर किसी बात की खोज का क्रम चल पडता है मन की इस गत्यात्मकता के भीतर कर्ता यानी सेल्फ या अहम का भाव और ध्रिड होता रहता है -अरुण

संघर्ष और खोज

संघर्ष उस खोज की प्रेरणा है जो सुख-शांति को खोजती है,   संघर्ष के लुप्त होते ही खोज की जरूरत ही नही उभरती -अरुण

“जो जैसा है’ वैसा ही समझ में नही उतरता

वास्तविकता का मनोबोध (शुद्ध समझ नही) होते ही, मन वास्तविकता के संपर्क में आता है, संवेदित होता है और अनुभव,स्मृति और जानकारी का अवलम्ब करते हुए विचार-चक्र को गतिमान कर देता है और इसीकारण- “ जो जैसा है ’ वैसा ही समझ में नही उतरता, शुद्ध समझ के जागने से पहले ही विचार-चक्र चल पडता है -अरुण

ये तो रिश्ते हैं, हकीकत नही

Relationship is imaginary, not real. It creates emotions and thoughts. Suppose during a movie projection, a scene of fire is being shown on cinema screen and watchers consider this fire on the screen being real, film-watching would be a suffering experience. अपने जज्बात और ख्यालात को कब भूलोगे ये तो रिश्ते हैं, हकीकत नही, कब भूलोगे स्क्रीन पे आग लगी उसको बुझानेवालों ये सिनेमा है हकीकत नही कब भूलोगे -अरुण

वह चौथी अवस्था

जब जागता हूँ अपने वर्तमान के सन्दर्भ में भूतजन्य विचार बन कर जीता हूँ, जब सोता हूँ अपने भूत के सन्दर्भ में भूतजन्य स्वप्न बनकर जीता हूँ. कभी कभी ही शायद अपनी सोयी अवस्था में ऐसे क्षण आये होंगे जब मै भूतजन्य विचार और स्वप्न दोनों से ही मुक्त था उस चौथी अवस्था का अभी पता ही नही जब मनुष्य अपने वर्तमान के सन्दर्भ में केवल वर्तमानजन्य वर्तमान बनकर ही जीता है -अरुण

कालप्रवाह से मुक्ति

समय के बहाव में आ गये तो अब बहना ही होगा अपने बीते के बहाव में ही नये को ढालना होगा समय की पहली बूंद जिस स्रोत से गिरती है वहाँ पर जो ठहरा हो उसी को कालप्रवाह से मुक्त हुआ समझो -अरुण

मजहबी शोर

There is lot of uproar in the name of religion But religion is seen no where मंदिरों मस्जिदों के शिखर फलकों पर मजहबी शोर के हर दौर उठे फलकों पर कार के पुर्जों की दुकाने कई हैं लेकिन एक भी कार नही दिखती यहाँ सडकों पर -अरुण

कबीर

पानी ही बोल बैठे अपनी सघन कहानी पानी कबीर, पानी ओशो, पानी ही सच की जुबानी कहानी को समझना हो तो पानी बन जाओ घाट पर बैठकर लोटे से मत नहाओ लोटे से नहाने वाले पंडित हैं पानी में डूब जाए वही है कबीर   -अरुण  

ये मन बड़ा बौराना है

मन के एक तरफ आत्मा और दूसरी तरफ यह शरीर, शरीर की सुनो तो आत्मा कोसती है आत्मा की मानो तो फिर मन अपनी तरफ खींच ले जाता है. मन को शरीर भी समझा लेता है और आत्मा की बातें भी जरुरी लगती हैं, दो नौकाओं में पैर रखकर चलने वाला यह मन अपने को डूबने से बचा नहीं पाता जीवन की यात्रा हमेशा बौराई अवस्था में ही करता रहता है   -अरुण    

खोज भी और बहकना भी

ये खोज यहाँ जारी है कई सालों से बहकाना भी है जारी कई सालों से रोज लगता है कि रौशनी दिखेगी आज यह ‘ आज ’ ही है उम्मीद कई सालों से -अरुण

भ्रष्टाचार का कपटी विरोध

चुंकि हर छोटे बड़े भ्रष्टाचार के पीछे कोई न कोई सही – गलत मजबूरी छुपी है, भ्रष्टाचार करनेवाले लोग अपने भ्रष्टाचार को मन ही मन सही ठहराते पाए जाते हैं विडम्बना तो यह है कि ऐसे ही लोग अन्ना और बाबा के पीछे भ्रष्टाचार विरोधी झंडा थामे नारा लगाते दिखते हैं. हाँ ऐसे लोगों के बलपर आरोपी सरकार को उखाड फेंका जा सकता है पर भ्रष्टाचार को नही मिटाया जा सकता -अरुण  

न ही कानों से दिखा ...

न ही कानों से दिखा और सुना आँखों से न ही मिटती है भूक और प्यास बातों से कोशिशे कर रहा हूँ कोशिशे मिटाने की दिल से छूना था जिसे उसको धरूं हांथो से -अरुण

मन से दूर- मंदिर

मन से दूर गया, मंदिर पहुँचा जग से दूर न कहीं राह कुई जाती है जग-मन की इस गुत्थी को जो समझ ले उसे जीस्त समझ आती है -अरुण

जहाँ से चल पड़ा वही था ठिकाना मंजिल

जहाँ से चल पड़ा वही था ठिकाना मंजिल भटक चुका है आदमी समाज में गिरते नये नियम समाज ने जो उसको बांधे हैं      वे नियम, दूर निकल जाने के ही काम आते उन्ही नियम से आदमी, गर तलाशे मंजिल कैसे पाएगा उसे दूर निकल जाएगा उलट जो चल पड़े, जहाँ से चल पड़ा था कभी वही मंजिल   पे सही हाल में लौट आएगा -अरुण

गणित

जगत में दो ही संख्याएँ हैं ‘ होना ’ और ‘ न होना ’ ‘ होने ’ की काल्पनिक गणना से गणित का जन्म हुआ -अरुण

सर्वव्यापकता ही ‘भगवान’

जो सर्वत्र है,   स्वयं के भीतर और बाहर भी स्वयं का सृष्टा और सृष्टि भी स्वयं का दृष्टा और दृष्टि भी -अरुण

आप का समर्पण- सच्चा या ढकोसला ?

चलिए मान लिया कि भ्रष्टाचार के विरोध में जनतांत्रिक आन्दोलन चलाने के प्रति आप समर्पित हैं. पर ऐसा करते वक्त भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति और प्रेरणा कम करने में आप रूचि रखते हैं या भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाकर उन्हें जेल भिजवाने में. आप की रूचि यह तय करेगी कि आप खुद को पुक्ता बनाने के प्रति समर्पित हैं या भ्रष्टाचार को मिटाने के प्रति -अरुण  

स्वाद आता है मन से

जगत तो निस्वाद है स्वाद आता है मन से जगत तो आनंद है सुख-दुख उपजते हैं मन में -अरुण

अहं की लकीरें

हवा पर खिंची हैं हवा की लकीरें ये मुद्दत गवाईं मगर मिट न पाई नजर भर के देखो के अहं की लकीरें हैं किसने बनाई और किसने मिटाई -अरुण

जागना और सोना

जागना है तो जगत की हर चीज पर जागो सोना है तो विचारों से भी सो जाओ -अरुण