जहाँ से चल पड़ा वही था ठिकाना मंजिल


जहाँ से चल पड़ा वही था ठिकाना मंजिल
भटक चुका है आदमी समाज में गिरते
नये नियम समाज ने जो उसको बांधे हैं    
वे नियम, दूर निकल जाने के ही काम आते

उन्ही नियम से आदमी, गर तलाशे मंजिल
कैसे पाएगा उसे दूर निकल जाएगा
उलट जो चल पड़े, जहाँ से चल पड़ा था कभी
वही मंजिल  पे सही हाल में लौट आएगा
-अरुण

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