सामाजिक संपर्क-व्यापार
सामाजिक संपर्क-व्यापार के चलते
आदमी की अपनी उपस्थिति और
पहचान उभर आती है (जो वस्तुतः भ्रामक ही है)
जिंदगीभर आदमी अपनी
इसी उपस्थिति और पहचान को
समाज में प्रसारित करने में जुटा रहता है
ताकि उसकी अपनी नजर में
उसकी अहमियत बढती रहे
-अरुण
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