सर्वव्यापकता ही ‘भगवान’


जो सर्वत्र है, 
स्वयं के भीतर और बाहर भी
स्वयं का सृष्टा और सृष्टि भी
स्वयं का दृष्टा और दृष्टि भी
-अरुण

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