हम एक किरदार



जीवन को नाटक समझ कर जीने के विचार को
मेरी कुछ पंक्तियाँ इस तरह अभिव्यक्त करती है –

 
जिसने खुद को इक किरदार यहाँ जाना है
उसने दुनिया को महज खेल समझ कर जी लिया
कुई हिन्दू कहे मुस्लिम कहे या कुछ न कहे
जो भी पाया वही चोला पहन कर खेल लिया
-अरुण

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