न अहंकार और न ही ईश्वर वास्तविक है



न तो सृष्टि का कोई रचयिता है और
न ही इस व्यक्ति विशेष का
फिर भी मनुष्य ने अपनी उपयोगिता के लिए
अपने अहंकार के भ्रम को एक वास्तविकता मान लिया है
और इसी के समर्थन में सृष्टि का अहम् या अहंकार
यानि ईश्वर की भी कल्पना कर डाली है,
इस मान्यता को ठोस रूप दे डाला है
-अरुण

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