गति तो हो पर दुर्गति नहीं



हमारी रोजाना की जिंदगी किन्ही
तात्कालिक इच्छाओं या/और
लम्बे स्पष्ट -अस्पष्ट इरादों की
दिशा में बढती रहती है
या यूँ कहें उस दिशा में
खिंची जा रही होती है.
इसतरह से धकेली गई
या खिंची जा रही जिंदगी
में तनाव, चिंता, भय, स्पर्धा, इर्षा, संघर्ष, द्वेष,
मतलबी नजदीकी आदि बातों का होना स्वाभाविक ही है.
इच्छाओं और इरादों की पूरी की पूरी प्रक्रिया
को साक्षीभावसे  (बिना स्वीकार या नकार के) देख रहा होता है
उसकी जिंदगी में भी गति है पर कोई दुर्गति नहीं
-अरुण     

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