रुबाई

रुबाई
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जिंदगी से है शिकायत सिर्फ़ बस इंसान को
और कोई ना बनाए....अलग ही पहचान को
सब के सब क़ुदरत की सांसे आदमी ही भिन्न है
आदमी इतिहास की रूह जी रहा अरमान को
- अरुण

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