कुछ शेर ....
आदम से न देखी शक्ल आदमी ने अपनी
अपने अक्स से काम चला लेता है
चार्चाए रोशनी कुछ काम का नही
दरवाजा खुला हो यही काफी है
बंद आँखों में अँधेरा, खुलते ही सबेरा
न फासला कुई मिटाना है
.......................................................... अरुण
अपने अक्स से काम चला लेता है
चार्चाए रोशनी कुछ काम का नही
दरवाजा खुला हो यही काफी है
बंद आँखों में अँधेरा, खुलते ही सबेरा
न फासला कुई मिटाना है
.......................................................... अरुण
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न फासला कुई मिटाना है
अति सुन्दर शेर....
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }