एक कैफियत वेदना भरी

क्यों न की मेरे अंतिम यात्रा की शुरुवात

उसी दिन जिस दिन मैं इस धरती पर आया

क्योंकि उसी दिन से तो शुरू कर दिया आपने

गला घोटना मेरी कुदरती आजादी का

उसी दिन तो शुरू किया आपने

मेरे निरंग श्वांसों में अपनी जूठी साँस भरकर

उसमें अपना जहर उतारना

उसी दिन से तो मुझे कैद कर लिया

आपके विचारों, विश्वासों और आस्थाओं ने

आपने बड़ा किया, बढ़ाया मुझे एक

इस अच्छे-भले कैदखाने में

अच्छी तरह से जीना सीखाया

यह कैदभरी जिंदगी,

मुझे सामान बनाया सामाजिक प्रतिष्ठा का

अब पहुँचने जा रहा हूँ अंतिम छोर पर

उस राह के

जिसका आरम्भ

कभी हुआ ही नही

.......................................... अरुण

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बहुत सुंदर भाव युक्त कविता
अब पहुँचने जा रहा हूँ अंतिम छोर पर

उस राह के

जिसका आरम्भ

कभी हुआ ही नही

सोच में डालने वाली कविता.

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